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लोग क्या सोचेंगे?

लोग क्या सोचेंगे? बहुत सुना है सबसे अपनों से परायों से! लोग क्या सोचेंगे…? इसकी शुरुआत का कोई अंदाज़ा नहीं, हाँ पर चाहें तो अंत ज़रूर हो सकता है क्या कभी सोचा है? कितने अरमां दब गए? कितनी उम्मीदें ख़त्म हो गईं? कितने रंग बेरंग हो गए? बस इसलिए कि लोग क्या सोचेंगे? पापा! वो लाल कपड़ा कितना सुंदर है! दिला दो! मैंने देखा है टीवी पे पहने हुए। क्या? वो घुटने तक का? और बिना बाहों का? अंग प्रदर्शन नहीं करवाना है हमको सलवार क़मीज़ पहनो, लोग क्या सोचेंगे! फिर भी वो झेलती रही रोज़ रास्ते

Nick

Nick

9 Aug 2017 1 min read

लोग क्या सोचेंगे?
बहुत सुना है सबसे अपनों से परायों से!
लोग क्या सोचेंगे…?

इसकी शुरुआत का कोई अंदाज़ा नहीं,
हाँ पर चाहें तो अंत ज़रूर हो सकता है क्या कभी सोचा है?

कितने अरमां दब गए? कितनी उम्मीदें ख़त्म हो गईं?
कितने रंग बेरंग हो गए? बस इसलिए कि लोग क्या सोचेंगे?

पापा! वो लाल कपड़ा कितना सुंदर है! दिला दो!
मैंने देखा है टीवी पे पहने हुए।

क्या? वो घुटने तक का?
और बिना बाहों का?

अंग प्रदर्शन नहीं करवाना है हमको सलवार क़मीज़ पहनो,
लोग क्या सोचेंगे!

फिर भी वो झेलती रही रोज़ रास्ते में उन बेपरवाह, बेग़ैरत, नामर्दों की बदसलूकी…
क्यूँकि माँ ने कहा था अच्छे घर की बेटियाँ ऐसे जवाब नहीं देतीं वरना!
लोग क्या सोचेंगे!

वो कभी कह ही नहीं पाई कि उसे और पढ़ना है आगे बढ़ना है,
आसमान छूना है कैसे कहती? इतने ऊपर उठने की बात जो थी!

लो अब लोग क्या सोचेंगे?
उसे भी प्यार हुआ,

दिल उसका भी बेक़रार हुआ कैसे बताती सबको, एक डर था!
हाय, लोग क्या सोचेंगे? हिम्मत करके, बहुत डर के बोली,

पसंद है उसे कोई पर ऐसे हमारे यहाँ शादियाँ नहीं होती, समझी?
लोग क्या सोचेंगे?

चलो, बसा लिया उसने घर जहाँ तुमने कहा था अब?
जो हाथ उसपे उठता है रोज़ उससे कैसे बचाओगे?
क्या रोज़ रोज़ दहेज की माँग पूरी कर पाओगे?

नहीं! बेटा घर की बातें घर तक ही रखनी चाहिए वरना,
लोग क्या सोचेंगे?

पहली बार ख़ुश हुई, माँ जो बनने वाली थी,
एक नयी ज़िंदगी को जन्म देने वाली थी पर देखो,
लड़का हो जाता तो ठीक था वरना,
लोग क्या सोचेंगे?

कब तक? आख़िर, कब तक?
जिन लोगों का सोच कर रुक जाते हैं आपके क़दम वो तो फिर भी सोचेंगे|
आप अपनी सोच बदल कि देखिए इस बार,
लोग कब तक सोचेंगे?

उसे भी ख़ुश रहने का हक़ दो लोगों को जो सोचना है सोचने दो|
बंद कर दो उनकी परवाह करना ख़ुशियाँ आपके अपने की हैं|

अगर अपने ही होंगे तो नहीं सोचेंगे,
उड़ जाने दो उसे,
छूने दो आसमान बदल दो अपनी सोच!
फिर देखना, लोग क्या सोचेंगे!!

ये लोग हैं,
इनके लिए जान भी दे दो फिर भी ये अपना ही सोचेंगे,
मतलब कि इस युग में कोई पूछने नहीं आता,
ज़माना ऐसा ही है ज़नाब,
सबका भला करके भी लोग कोसेंगे,

इससे अच्छा है कि खुल के जियो सोचने दो, जो लोग सोचेंगे!!
– नीरज

Note: This was my first attempt to publish something in Hindi on my blog. I know I suck at Hindi, fine, I’ll improve, gradually. Also, I’m sorry for this no-rhyming poem. Just get the essence of it. Thanks for reading. Ciao.

Also, this wouldn’t have been possible without Google Input Tools as I don’t know how to type in Hindi.